हुं मै आदी भी और अंत भी
हुं मै अचेतन भी सचेतन भी
हुं मै साथ भी तेरे निकट भी
हुं मै सत्य भी और मिथ्य भी
हुं सर्वत्र भी और नित्य भी
हुं आग भी और पानी भी
हुं जन्म भी और मृत्यू भी
हुं कर्म भी और मोक्ष भी
हुं नूतन भी और जीर्ण भी
हुं काया भी और साया भी
हुं तुझमे भी और बाद भी
हुं ओंकार भी और नाम भी
हुं आवाज भी और शांत भी
हुं आकाश भी और पाताल भी
हुं चैतन्य भी और शक्ती भी
हुं पुरुष भी और प्रकृती भी
बस तू इस तरह देख मुझे
के नीत नीत पायेगा तेरे अंदर
© कवी : प्रसन्न आठवले
३०/०६?२०१८
१४:४६
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