तक़रार और प्यार
मेरी यादों को चाय में डुबोके,
मीठी करदी चाय तूने,
कुछ इस तरह, जैसे चीनी मिलाई हो
अक्सर, मेरी बातोंको याद करके
खानाभी बनाती हो तुम,
फिर वो और भी मीठा हो जाता है,
और फिर कहती हो के, अक्सर
तुम मेरे स्वाद को बिगाड़ रहे हो,
भला इसमें मेरी क्या गलती है
कहती हो तुम्हारी यादे, अब मुझमे बसती है,
भला ये भी कोई तरीका है शिकायत का
कह देती मेरी यादोंको तुम
मत आना, मत सताना, बारबार मुझे आकर
खैर ये क्या कम है,
जो कहती हो के नींद भी नही आती
पूछा जो हमने क्या वजह है इसकी ,
कहती हो, तुम तो ख्वाबों में भी सताते हो आकर,
अब ये तो हद हो गई शिकायत की
भला दिलभी तुंम्हारा और दिमागभी
हम कहांसे आये इनमे, जान मेरी
तब तुमने शरमाकर, नजरे झुकाकर ,
एक हलकिसी मुस्कान से कहा
वो तो अब कहाँ रहा हमारा,
उसमे तो तुम आकर बसे हो,
मेरे पास तो दिल है तुम्हारा
©® शायर : प्रसन्न आठवले
०७/१०/२०१७
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