रविराज नमन रविराज तू आशीष दे ये लीनता बनती रहे तेरे ह्रदय मेंही सदा श्रुष्टि की धग जलती रहे ।। तू यूं सदा अंगारबन निर्माण वश चलता रहे तेरा नियम जलकर किरण बनकर यूँही आता रहे ।। तू मौन है पर तेरी जुबाँ यूँही हमें जीवित रखे तू कांप उठे और फिर ये आग तेरी शूल रखे ।। तू शांत हो तो ठण्ड भी हमको सताने पर तुले तब तू इसे बस इकही झलक में तापकर जलमे तुले।। तू राग है इस श्रुष्टि का जो हर समय कहता है ये जो जल रहा सबके लिए वो आग बन बहता रहे।। तू है जीवन तू ही किरण तू आग और जल भी है तू तेरे ह्रदय का प्रेम भी परिवर्तन करे हर पल ही तू।। अब ये नमन स्वीकार कर मेरा ह्रदय अंगार कर तेरी तरह हर एक प्राणी कुछ करे यह स्वीकार कर।। प्रसन्न आठवले