विजय गान
मृदुंग भंग दम्भ पर
कलेश कंठ मिथ्य पर
विराट पर्व पंथ पर
नमामि सार्थ चेतना ।।१।।
कलेश कंठ मिथ्य पर
विराट पर्व पंथ पर
नमामि सार्थ चेतना ।।१।।
कुसुमी हस्त वज्र पर
धरे धरा ये खड्ग पर
चले सदा ही धर्म पर
व्रजा करे निखर्व पर ।।२।।
धरे धरा ये खड्ग पर
चले सदा ही धर्म पर
व्रजा करे निखर्व पर ।।२।।
रिपू जले ये अंगरा
प्रभा जो भानु सागरा
पुनः पुनः प्रहाररा
प्रकट प्रतापी ये धरा ।।३।।
प्रभा जो भानु सागरा
पुनः पुनः प्रहाररा
प्रकट प्रतापी ये धरा ।।३।।
हजार हस्त साथ है
सदा तुम्हारी पाथ पर
चले करे प्रताप ये
तुम्हारी एक चेत पर।।४।।
सदा तुम्हारी पाथ पर
चले करे प्रताप ये
तुम्हारी एक चेत पर।।४।।
ध्वजा धरे विजित पर
यशोहीगान जीव्ह पर
चले ये खड्ग शत्रू पर
विजय तूम्हारी राह पर।।५।।
यशोहीगान जीव्ह पर
चले ये खड्ग शत्रू पर
विजय तूम्हारी राह पर।।५।।
कवी : प्रसन्न आठवले
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