चंद पंक्तीया
ये गिरी झुल्फे बस आँखो को ओझल कर रही है
लेकीन नजरोंसे वार तो होचुके दिलपे मेरे
नजरे एकबार मिलाकर दिलको सुकून तो दिजीए
सोचिये जनाब हालत दिलकी क्या है मेरे
इन काली घटासी जुल्फो मे नजरे न गुम करना ,
दिलं की बेसबरी हद से बढ रही है ऐ हसीना
एक बार गर देख लो पलके उठाकर ऐ जानम,
बस कत्ल का इलजाम तो न लग जाये तुमपर
खुद का वासता जो न देखो इक बार मुझको,
दिलं तो फुल सा सुखकर मूर्झा जायेगा
गर इस कदर न करो कदर मेरे प्यार की ऐ हुस्ने यार,
चमन के फुल क्या खाक खिलेंगे कलसे
©® शायर : प्रसन्न आठवले
०९/०२/२०२०
१८:१९
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