यादे
हमें न ख्वाइश ना ही उम्मीद कोई
वो हमसे प्यार न सही नफरत तो न करते।।
गर मिल जाये खजाने की चाबी भी गर कोई
हम उसमे दौलत नहीं उनकी तस्वीरे रखते ।।
हमने चाहा था के हमसे वो मिले लेकिन
ये न उम्मीद के गैरों के सहारे हो जाते ।।
अपनी तक़दीर न फुल न बिछौना होगा
पर उनके तो घर भी सुहाने बन जाते ।।
हमने सिखा है के मुहोब्बत है दवा कोई
पर ये न चाहा के संगदिल-ए- जहर बनते ।।
उफ़ ये तानहाई न हमें सोने देगी
यादमें उनकी भी तो हम बेकाबू होते ।।
है ये प्याला भी पैमाना भी आखिर
भूलना चाहूँ तो भी याद दिलाते रहते।।
वो हमसे प्यार न सही नफरत तो न करते।।
गर मिल जाये खजाने की चाबी भी गर कोई
हम उसमे दौलत नहीं उनकी तस्वीरे रखते ।।
हमने चाहा था के हमसे वो मिले लेकिन
ये न उम्मीद के गैरों के सहारे हो जाते ।।
अपनी तक़दीर न फुल न बिछौना होगा
पर उनके तो घर भी सुहाने बन जाते ।।
हमने सिखा है के मुहोब्बत है दवा कोई
पर ये न चाहा के संगदिल-ए- जहर बनते ।।
उफ़ ये तानहाई न हमें सोने देगी
यादमें उनकी भी तो हम बेकाबू होते ।।
है ये प्याला भी पैमाना भी आखिर
भूलना चाहूँ तो भी याद दिलाते रहते।।
शायर : खुशमीजाज आशिक
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