इश्क़
यहां बारिश भी है गजब ढाती
और वो है के दूर अलीफा करते ।।
हम डूबते बीचोबीच समुन्दरमे
और वो किनारे पे मछलिया गिनते ।।
ये इश्क़ भी कमबख्त है दवा ऐसी
जहर जो पियो ना तो जामे अंगूर होते ।।
हम है तैयार बेसब्रीसे मिलने लेकिन
है ख्वाबो दीदार भी मुश्किल लगते ।।
हम न सोये बरसो खयालो से उनके
और वो है के ओढ़े गद्दे चादर सोते ।।
यहाँ तो आग लगी है बराबर ये जाना
उनके तो खयाल भी कुछ और होते ।।
लगता है के ये बेताबी ऐ इश्के जालिम
वो खुश महलो में हम यहा बेआबरू होते ।।
और वो है के दूर अलीफा करते ।।
हम डूबते बीचोबीच समुन्दरमे
और वो किनारे पे मछलिया गिनते ।।
ये इश्क़ भी कमबख्त है दवा ऐसी
जहर जो पियो ना तो जामे अंगूर होते ।।
हम है तैयार बेसब्रीसे मिलने लेकिन
है ख्वाबो दीदार भी मुश्किल लगते ।।
हम न सोये बरसो खयालो से उनके
और वो है के ओढ़े गद्दे चादर सोते ।।
यहाँ तो आग लगी है बराबर ये जाना
उनके तो खयाल भी कुछ और होते ।।
लगता है के ये बेताबी ऐ इश्के जालिम
वो खुश महलो में हम यहा बेआबरू होते ।।
शायर : खुशमीजाज आशिक
Comments
Post a Comment