एहसास
एक एहसास है के गम न सताये तुझको
पर न मुमकीन है जो खुद दूं गम तुझको ।।
रूह पर ढाये है लाखो सीतम ऐ तक़दीर
तूने ये सह के दिखाया है गमे दील तनहा ।।
मैंने भी तो है बढ़ाया ये तेरा बोझ लेकिन
तेरे खामोश जवाबों से हूँ परेशान रहता ।।
अब ये आलम के डरता हूँ अपनी बातोंसे
के कही फूल मेरे तुझपे न उछाले जख्मे ।।
पर ये कैसे करू हाले बया दिल मेरा
तूही जो मुझको संभाले है गमेदिल के रहते।।
पर न मुमकीन है जो खुद दूं गम तुझको ।।
रूह पर ढाये है लाखो सीतम ऐ तक़दीर
तूने ये सह के दिखाया है गमे दील तनहा ।।
मैंने भी तो है बढ़ाया ये तेरा बोझ लेकिन
तेरे खामोश जवाबों से हूँ परेशान रहता ।।
अब ये आलम के डरता हूँ अपनी बातोंसे
के कही फूल मेरे तुझपे न उछाले जख्मे ।।
पर ये कैसे करू हाले बया दिल मेरा
तूही जो मुझको संभाले है गमेदिल के रहते।।
शायर : खुशमीजाज आशिक
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