अश्क
उनकी यादों में जो कूछ अश्क निकल पड़े
गर वो गैर थे तो ये क्यूँ आँखोसे चल पड़े
उनकी यादो में ....
जिंदगी सोंपदी हमने उनके हातोंमे लेकिन
कातिलों की तरहां रास्ते में वो चल पड़े
उनकी यादो में .....
कातिलों की तरहां रास्ते में वो चल पड़े
उनकी यादो में .....
गैर तो गैर थे उनसे क्यों हो गीला
आपको मानते थे अपना हम तो झूठे पड़े
उनकी यादों में .......
आपको मानते थे अपना हम तो झूठे पड़े
उनकी यादों में .......
फिक्र इस बात की है नहीं आज भी
राहे उल्फत में देखा हम अकेले ही खड़े
उनकी यादों में ........
राहे उल्फत में देखा हम अकेले ही खड़े
उनकी यादों में ........
बस उन्हें दे खूशी और हमें सारे गम
क्यों की मुश्किल में तो रहना हमे ही पड़े
उनकी यादो में ...........
क्यों की मुश्किल में तो रहना हमे ही पड़े
उनकी यादो में ...........
गझलकार : प्रसन्न आठवले
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