आज इक शामभरी राधिका की आर्तता और प्यार की पुकार इक अनोखी अदा राधिका की शाम के प्रति रखता हूँ :
हर घूंट में है राधिका हर घूंट में है शाम भी
मनको जो है लागी लगन हर पल नये नीत शाम भी
आये गये कितने ही युग कितने बरस है बीतते
लगी है जो ये मनमे लगन हर ओर है अब शाम ही
तुम जो न देखो सांवरे मन ये तुम्हेहि ढूंढता
जो ना मिले जग में कहीं मेरे मन में है अब शाम ही
ऐ सांवरे बंसी तेरी करती लता तरुवरको मुग्ध
मनमे मेरे बजती है ये मेरे साथ है धुन शाम की
मैं बावरी कान्हा तेरे बस एक झलकी देखने
पर है पता नटखट हो तुम हो सामने सुब शाम ही
ये मंजिरी ये मोरपंख ये है तुम्हारे रूप में
पर मैं जो जानू, जानो ना तुम चारो तरफ है शाम ही
ये सांस चलती है जो बस हर नस तुम्हे है पुकारती
आये गये सावन कई एक धार प्यार की शाम ही
इक अंजुरी भर देदो मुझे झलके तुम्हारे रूप की
नैनो में हो दिलमे भी हो बस राधिका के शाम भी
कवी: प्रसन्न आठवले
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